नीली रावी भैंस (Nili Ravi Buffalo Breed)
नीली रावी (Nili Ravi Buffalo) भारत और पाकिस्तान में पायी जाने वाली एक महत्वपूर्ण जलीय / नदीय भैंस की नस्ल है। इसका नाम “नीली-रावी” पंजाब क्षेत्र के नीलम और रावी नदियों के नामों से मिलकर बना है। नीली रावी भैंस का जन्म स्थान पंजाब राज्य से माना जाता है। इस नस्ल की मुख्य विशेषता है इसकी उच्च दूध उत्पादन और अच्छी क्षमता है। इस नस्ल की मुख्य कमी यह है कि इसके दूध में फैट की मात्रा कम होती है। भारत में वर्तमान में 220 जानवरों और पोल्ट्री की कुल देशी नस्लें हैं। पहले, कुल 212 नस्लें पंजीकृत थीं। दिसम्बर 2023 में, 8 नई नस्लों को पंजीकृत किया गया है, जिससे कुल पंजीकृत नस्लों की संख्या 212 से बढ़कर 220 हो गई है। भारत में वर्तमान में भैंसों की कुल पंजीकृत नस्ल 20 है।
Nili Ravi Buffalo Information
Conservation Status | Not at Risk |
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Scientific Classification |
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Breed Type | Indigenous Dairy Breed |
Alternate Names | Panch Kalyani, Panchbhadra |
Origin | Punjab, India & Pakistan |
Distribution |
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Breed Composition | Part of Murrah Group |
Physical Traits |
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Milk Production |
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Breeding Traits |
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Key Identifiers |
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Population | Significant in Punjab; Present in other regions of India and abroad |
The Rajasthan Express: Nili Ravi Buffalo Breed Details |
नीली रावी भैंस का मूल स्थान और वितरण :
नीली रावी भैंस (Nili Ravi Buffalo) का जन्म स्थान पंजाब और पाकिस्तान में माना जाता है। नीली रावी मुर्रा ग्रुप (Murrah Group) की भैंस हैं। जो भारत और पाकिस्तान के सीमावर्ती राज्यों मर मुख्यत देखने को मिलती है। नीली रावी भैंस के महत्व को डेयरी फार्मो में उजागर करने के लिए केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान (CIRB – Central Institute for Research on Buffaloes) हर वर्ष कार्यक्रम और मेलों का आयोजन करता है। यह केंद्र नीली रावी और मुर्रा नस्ल की भैंसों जैसी बेहतर डेयरी भैंस नस्ल के संरक्षण और सुधार के लिए समर्पित है।
- नीली रावी भैंस (Nili Ravi Buffalo) का वितरण भारत में मुख्यत : पंजाब , राजस्थान (श्री गंगानगर , हनुमानगढ़ , बीकानेर) , हरियाणा (हिसार , रोहतक) , दिल्ली आदि राज्यों में है।
- नीली-रावी भैंस का वितरण कुछ अन्य देशों में भी होता है। इसे भारत, चीन, बांग्लादेश, फिलिपींस, श्रीलंका, ब्राज़िल, और वेनेजुएला में पाया जाता है। यह एक प्रसिद्ध डेयरी नस्ल है जिसे विभिन्न देशों में उत्पादन के लिए पाला जाता है।
नीली रावी भैंस के अन्य नाम :
नीली रावी भैंस (Nili Ravi Buffalo) के शरीर (सिर , पूँछ , मजल , चेहरे और पैरों ) पर 5 सफेद निशान पाए जाते है जो इस नस्ल की मुख्य पहचान है। इसी कारण नीली रावी भैंस को पंचभद्रा या पंचकल्याणी के नाम से जाना जाता है।
मुर्रा ग्रुप में आने वाली भैंस की नस्ल (Breed of buffalo coming in Murrah group):
- नीली रावी भैंस
- गोजरी भैंस
नीली रावी भैंस की पहचान :
1. रंग (Colour) :-
- नीली रावी भैंस का रंग काला व् हल्का भूरा होता है।
2. सींग (Horn) :-
- नीली रावी भैंस के सींग सामन्यत छोटे व् मुड़े (Small Curled) हुए होते है।
3. आंख (Eye) :-
- नीली रावी भैंस की आंख बिल्ली के जैसी कजरी (Wall Eye) होती है।
4. पूँछ (Tail) :-
- इनकी पूँछ की Switch सफ़ेद बालों वाली होती है।
Switch :- पूँछ के अंतिम सिरे पर बालों का गुच्छा।
5. निशान (Body Mark) :-
- नीली रावी भैंस के मजल , सिर , चेहरे , पूँछ और पैरो पर सफ़ेद निशान (White Marks) पाए जाते है जिसके कारण इसे पंचकल्याणी या पंचभद्रा कहते है। जो इस नस्ल की मुख्य पहचान है।
नीली रावी भैंस की उपयोगिता और विशेषताएँ :
- नीली रावी भैंस (Nili Ravi Buffalo) एक महत्वपूर्ण डेयरी जानवर है जिसकी उच्च दुग्ध उत्पादन क्षमता के कारण भारत और पाकिस्तान के किसानों के लिए एक अनमोल आय संसाधन है।
- नीली रावी भैंस के दुग्ध उत्पादन क्षमता का रिकॉर्ड 6535 Kg है, जो 378 दिनों के दुग्धकाल के दौरान दर्ज की गई है। यह दर उत्कृष्ट उत्पादन क्षमता का प्रमाण है।
दुग्ध उत्पादन (Milk Production)
इसका औसत दूध उत्पादन लगभग 2000 लीटर प्रति वर्ष होता है, जिससे प्रतिदिन 14 से 16 लीटर दूध प्राप्त होता है। यह भैंस दुग्ध उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है और इसका वसा उत्पादन भी 4% है, जो अन्य भैंसों से कम है। इसकी विशेषता में से एक यह भी है कि इसका दूध सबसे कम फैट की मात्रा में होता है, जिसके कारण इसे मुख्य रूप से डेयरी फार्मों में दुग्ध उत्पादन के लिए पाला जाता है।
दुग्ध उत्पादन (Milk Production) :- 1800 – 2000 Liter Per Lactation Period .
वसा उत्पादन (Fat Production ) :- 4 % (सभी भैंसो में से सबसे कम फैट की मात्रा )
- नीली रावी भैंस एक दिन में 14 से 16 लीटर दुग्ध देती है।
भारत में पशुधन की आबादी 20वीं पशुधन गणना के अनुसार :
1. कुल पशुधन आबादी:
- 2019 में देश में कुल पशुधन आबादी 535.78 मिलियन है, जो 2012 की गणना की तुलना में 4.6% अधिक है।
2. कुल गायों की संख्या:
- 2019 में कुल गायों की संख्या 192.49 मिलियन है, जो पिछली गणना की तुलना में 0.8% ज्यादा है। देशी गायो में सबसे लम्बा दुग्धकाल ” गिर गाय (Gir Cattle) ” का होता है।भारत की देशी गायो में सबसे ज्यादा दुग्ध उत्पादन साहीवाल गाय करती है।
3. कुल भैंसों की संख्या:
- 2019 में भारत में कुल भैंसों की संख्या 109.85 मिलियन है, जो पिछली गणना की तुलना में लगभग 1.0% अधिक है।भारत में भैंसों की आबादी विश्व की सबसे बड़ी है।
- भारत में भैंसों की आबादी मुख्यत ग्रामीण क्षेत्रो में है। भारत में भैंसों की उपयोगिता दूध और मांस के लिए व्यापक रूप से है।सबसे ज्यादा दूध देने वाली भैंस की नस्ल ” मुर्रा (Murrah Buffalo Breed) ” है।
निष्कर्ष (Conclusion)
- “नीली रावी भैंस (Nili Ravi Buffalo) , जिसकी उत्पत्ति पंजाब के नीलम और रावी नदियों से जुड़ी हुई है, दूध उत्पादकों के लिए महत्वपूर्ण है। इसके दूध में कम फैट होने के बावजूद, नीली रावी भैंस दूध उत्पादन के लिए लोकप्रिय है।इसकी पहचान के लिए मुख्य विशेषताएँ शरीर पर पांच सफेद निशान हैं, जो इसे आसानी से पहचानने में मदद करते हैं।
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मुर्रा भैंस की कीमत कितनी है?
मुर्रा भैंस की कीमत शुद्ध नस्ल की मुर्रा भैंस के लिए औसतन 1,00,000 रुपये से 3,00,000 रुपये तक हो सकती है। सामान्य नस्ल (Mixed Breed) की मुर्रा भैंस की कीमत औसतन 50,000 रुपये से 1,50,000 रुपये तक हो सकती है।
मुर्रा भैंस की पहचान कैसे होती है?
मुर्रा भैंस की पहचान के लिए इसके रंग, सींग, सिर, कान, गर्दन, थन, पूंछ आदि के विशेषताओं का ध्यान रखा जाता है। इसका रंग काला स्याही होता है, सींग जलेबीनुमा होते हैं, सिर हल्का और छोटा होता है, कान छोटे और पतले होते हैं, गर्दन मादा में लंबी और पतली होती है तथा पूंछ लंबी होती है और हॉक जोड़ के नीचे लटकी रहती है।
कौन सी भैंस सबसे ज्यादा दूध देती है?
सबसे ज्यादा दूध देने वाली भैंस की नस्ल मुर्रा है। इस नस्ल की भैंस एक ब्यात में औसतन 1680 – 2000 किलोग्राम दूध प्रतिवर्ष प्रक्षेपित करती हैं, जिसमें 7% तक फैट (Fat) होता है।
नीली रावी भैंस की क्या पहचान है?
नीली रावी भैंस कितना दूध देती है?
नीली रावी भैंस की दुग्ध उत्पादन काफी उत्कृष्ट है। इसका औसत दूध उत्पादन लगभग 2000 लीटर प्रति वर्ष होता है, जिससे प्रतिदिन 14 से 16 लीटर दूध प्राप्त होता है। यह भैंस दुग्ध उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है और इसका वसा उत्पादन भी 4% है, जो अन्य भैंसों से कम है। इसकी विशेषता में से एक यह भी है कि इसका दूध सबसे कम फैट की मात्रा में होता है, जिसके कारण इसे मुख्य रूप से डेयरी फार्मों में दुग्ध उत्पादन के लिए पाला जाता है।