Nagori Cow: The Mighty Draught Breed of Rajasthan
नागोरी गाय , जिसे कृषि कार्यों और बोझा ढोने (Draught Purpose Breed) के काम में लिया जाता जाता है, जो राजस्थान के नागौर जिले की एक स्वदेशी नस्ल है। भारत में वर्तमान में देशी गायों की कुल 53 पंजीकृत देशी नस्ल है। नागोरी गाय, राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों से उत्पन्न एक मजबूत और फुर्तीली नस्ल है, जो अपनी भारवाहक क्षमता के लिए जानी जाती है। नागोरी गाय की सहनशीलता और अनुकूलता इसे राजस्थान की कठिन जलवायु परिस्थितियों में किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन बनाती है।
Nagori Cow Information
Conservation Status | Not at risk, primarily found in Rajasthan |
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Scientific Classification |
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Breed Type | Indigenous |
Alternate Names | Nagori Cow, Nagauri Cow |
Country of Origin | India: Nagaur district, Rajasthan |
Genetic Composition | Crossbreed of Haryana and Kankrej cattle |
Distribution | Primarily found in Nagaur, Bikaner, and Jodhpur districts of Rajasthan |
Main Uses |
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Physical Traits |
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Size and Weight |
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Breeding Tract | Primarily in Nagaur, Bikaner, and Jodhpur districts |
Reproductive Traits |
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Population Trends | Significant increase in population since 1992, with around 373,000 recorded in 2013 |
The Rajasthan Express: Nagori Cow Breed Information |
Origins and Distribution of Nagori Cow (जन्म स्थान और वितरण)
नागोरी गाय का नाम राजस्थान के नागौर जिले से लिया गया है, जो इसका गृह क्षेत्र है। नागोरी गाय मुख्य रूप से नागौर जिले में पाए जाते हैं, लेकिन ये जोधपुर और बीकानेर जिले के नोखा तहसील में भी पाई जाती हैं।
नागोरी गाय में हरियाणा व कांकरेज दोनों नस्लो के लक्षण देखने को मिलते है इसलिए नागोरी गाय को हरियाणा व् कांकरेज गाय का मिश्रण माना जाता है।
Main Uses of Nagori Cow (उपयोग)
1. Draught Purpose:
- नागोरी गाय का उपयोग भारवाहक / बोझा ढोने के कार्य के लिए है, विशेष रूप से बैल और परिवहन के लिए। नागोरी बैल विशेष रूप से गहरी रेतीले जमीन पर भारी कार्य करने में सक्षम होते है।
2. Agricultural Work:
- नागोरी बैलों का उपयोग किसानों द्वारा कृषि कार्यों में किया जाता है। हालाँकि नागोरी गाय में दुग्ध उत्पादन कम होता है।
- राजस्थान की सबसे अच्छी भारवाहक / बोझा ढोने वाली नस्ल नागोरी गाय है।
Characteristics of Nagori Cow (नागोरी गाय की पहचान)
शरीर (Body)
- नागोरी गाय सफेद, ऊँची, बहुत सतर्क और फुर्तीली होती है, जिसका चेहरा लंबा और संकीर्ण होता है, जो घोड़े जैसा दिखता है।
रंग (Colour)
- आमतौर पर नागोरी गाय सफेद या हल्का ग्रे रंग की होती है, इस नस्ल के गले, कंधों और क्वार्टर पर कभी-कभी गहरे रंग के शेड्स (Shades) भी देखे जाते हैं।
सिर और सींग (Head & Horn)
- सिर सपाट होता है और हल्के ढंग से झुकी हुई पलकें होती हैं। सींग मध्यम आकार के होते हैं, जो ऊपर की ओर मुड़े हुए होते हैं।
त्वचा और बाल (Skin & Hair)
- त्वचा महीन और थोड़ी ढीली होती है, जिसमें काले रंग का वर्णन होता है, सिवाय थन और कान के अंदर, जहाँ यह समृद्ध पीला होता है।
चाल (Move)
- नागोरी बैलो में कभी – कभी सवाईचाल देखने को मिलती है लेकिन पूर्ण रूप से सवाईचाल कांकरेज गाय में देखने को ही मिलती है।
Visible Characteristics of Nagori Cow (दिखावट)
- Height: Males average 148 cm, while females average 124 cm.
- Body Length: Males average 145 cm, and females average 138 cm.
- Heart Girth: Males average 195 cm, while females average 165 cm.
- Weight: Males average 363 kg, and females average 318 kg.
- Birth Weight: The average birth weight is 16.9 kg, with males weighing around 17.5 kg and females 16.3 kg.
Management and Feeding
- नागोरी गायों का आमतौर पर अर्ध-सघन प्रणाली (Semi Intensive System) के तहत प्रबंधन किया जाता है। मुख्य चारे में खेजड़ी, कबली कीकर, जल, आक और सेवण घास जैसे पेड़ शामिल हैं।
- जानवर चारे की तलाश में लंबी दूरी तय करते हैं, और बैलों को आमतौर पर खूटे में बांधकर खिलाया जाता है।
Performance and Productivity (उत्पादन)
Nagori cows are notable for their productivity, particularly in terms of draught work and milk production.
- Age at First Parturition: On average, 47.37 months.
- Parturition Interval: Approximately 15.16 months.
- Milk Yield per Lactation: Ranges from 479 kg to 905 kg, with an average of 603 kg.
- Milk Fat: An average of 5.8%.
Peculiarity of the Breed (विशेषता)
बैल बड़े और शक्तिशाली होते हैं, जो गहरे रेत में भारी बैल कार्य करने में सक्षम होते हैं। पतलेपन और हड्डी की हल्कापन की प्रवृत्ति के बावजूद, उनके पैर मजबूत होते हैं, जो उनकी फुर्ती और आसानी से चलने में योगदान करते हैं, अक्सर घोड़े की तरह।
नागोरी गायों की आबादी (Population Statistics)
भारत सरकार के पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन विभाग के अनुसार, नागोरी गायों की जनसंख्या।
- 1992: Approximately 173,000
- 2013: Approximately 373,224
भारत में पशुधन की आबादी 20वीं पशुधन गणना के अनुसार :
1. कुल पशुधन आबादी:
- 2019 में देश में कुल पशुधन आबादी 535.78 मिलियन है, जो 2012 की गणना की तुलना में 4.6% अधिक है।
2. कुल गायों की संख्या:
- 2019 में कुल गायों की संख्या 192.49 मिलियन है, जो पिछली गणना की तुलना में 0.8% ज्यादा है। देशी गायो में सबसे लम्बा दुग्धकाल ” गिर गाय (Gir Cattle) ” का होता है।
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People Also Ask
नागौरी क्या होती है?
नागोरी गाय एक स्वदेशी नस्ल है जो राजस्थान के नागौर जिले से उत्पन्न हुई है। यह गाय मुख्य रूप से कृषि कार्यों और बोझा ढोने के लिए उपयोग की जाती है, जिसे भारवाहक और कृषि कार्यों के लिए पाला जाता है। नागोरी गाय राजस्थान के कठिन जलवायु परिस्थितियों में उन्नत सहनशीलता और अनुकूलता के कारण किसानों के लिए महत्वपूर्ण है।
नागौरी किसकी नस्ल है?
नागोरी गाय, हरियाणा और कांकरेज गायों के मिश्रण से उत्पन्न एक नस्ल है। इसमें दोनों नस्लों के गुण मिलते हैं, जिससे यह कृषि और भारवाहक कार्यों के लिए उपयुक्त बनती है।
नागौरी गाय कितना दूध देती है?
नागोरी गाय का दूध उत्पादन प्रति लैक्टेशन 479 किलोग्राम से 905 किलोग्राम तक होता है, औसतन यह 603 किलोग्राम दूध देती है। इसका दूध औसतन 5.8% वसा युक्त होता है, हालांकि इसका दुग्ध उत्पादन अन्य गायों की तुलना में कम होता है।
नागोरी गाय की विशेषताएँ क्या हैं?
नागोरी गाय की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
- रंग: सफेद या हल्का ग्रे रंग में होती है, और कभी-कभी गले और कंधों पर गहरे रंग के शेड्स होते हैं।
- सिर और सींग: इसका सिर लंबा और संकीर्ण होता है, और सींग मध्यम आकार के होते हैं, जो ऊपर की ओर मुड़े हुए होते हैं।
- दिखावट: शरीर ऊँचा, फुर्तीला और शक्तिशाली होता है, और कभी-कभी इनकी चाल घोड़े जैसी होती है।
- आकार और वजन: नर का औसत वजन 363 किलोग्राम और मादा का 318 किलोग्राम होता है।
नागोरी गायें कहां से आईं?
नागोरी गाय राजस्थान के नागौर जिले से आई हैं। इसके अलावा, ये जोधपुर और बीकानेर जिलों के नोखा तहसील में भी पाई जाती हैं। इस नस्ल को हरियाणा और कांकरेज नस्लों का मिश्रण माना जाता है, जो राजस्थान की कठिन जलवायु में अच्छी तरह से अनुकूलित हुई है।