कांकरेज गाय (Kankrej Cow) : भारत की सबसे भारी व् मजबूत नस्ल
कांकरेज नस्ल भारत की देशी नस्लों में से एक प्रमुख और भारी गायों की नस्ल है। कांकरेज नस्ल एक द्विकाजी नस्ल (Dual Purpose Breed) है, जिसे मुख्यतः दुग्ध उत्पादन और कृषि कार्यों के लिए पाला जाता है। अपनी मजबूत शरीर संरचना और उत्कृष्ट खींचने की क्षमताओं के लिए जानी जाने वाली कांकरेज गायों को कृषि कार्य और दुग्ध उत्पादन दोनों के लिए अत्यधिक महत्व दिया जाता है। इस ब्लॉग पोस्ट में कांकरेज गाय की नस्ल की उत्पत्ति, विशेषताएँ और लाभों के बारे में विस्तार से चर्चा की जाएगी, जिससे पशुपालकों और उत्साही लोगों को व्यापक जानकारी मिल सके।
Kankrej Cow Information
Conservation Status | India: Not at risk |
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Scientific Classification |
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Origin | North Gujarat, India (Kutch region) |
Distribution | Found primarily in Gujarat and Rajasthan (districts: Jalore, Barmer, Jodhpur) |
Alternate Names | Bannai, Nagar, Talabda, Vaghiyar, Vaghaad, Waged, Vadhiyar, Vadhal, and Barmeri |
Physical Characteristics |
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Milk Production | 1200-1300 kg per lactation |
Fat Content | 4.8% |
Special Trait | Renowned for its dual-purpose use in milk production and draught power |
Temperament | Active, resilient, and resistant to diseases like tick fever |
Notable Feature | Known for their distinctive “Swaichal” walking style |
The Rajasthan Express: Kankrej Cow Breed Information |
कांकरेज गाय का जन्म स्थान और वितरण
कांकरेज गायों (Kankrej Cow) की उत्पत्ति भारत के उत्तर गुजरात के कच्छ रण क्षेत्र से हुई है। इस नस्ल का नाम इसी क्षेत्र से लिया गया है, जो कच्छ के रेगिस्तान के दक्षिण-पूर्व में स्थित है। कांकरेज गाय का वितरण क्षेत्र गुजरात और राजस्थान के जालौर , बाड़मेर , जोधपुर जिलों में माना जाता है।
कांकरेज गाय के उपनाम
कांकरेज गायों (Kankrej Cow) को विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है, जैसे बण्णाई, नगर, तालबदा, वाघियार, वगाड, वागेड, वधियार, वधियार, वधीर, वडियाल और सांचोरी , बाड़मेरी (राजस्थान)।
शारीरिक लक्षण (Physical Characteristics) :
- इनका रंग सिल्वर से लेकर ग्रे , लोहे के ग्रे या स्टील ब्लैक तक होता है। नवजात बछड़ों का सिर का रंग लाल होता है, जो आमतौर पर छह से नौ महीने में गायब हो जाता है।
- कांकरेज नस्ल के पशु शरीर में भारी भरकम होते है। कांकरेज गायों का माथा चौड़ा और नाक थोड़ी ऊपर उठी हुई होती है। उनका चेहरा छोटा होता है और उनके मजबूत लाइर के आकार के सींग एक उल्लेखनीय विशेषता हैं। कांकरेज भारत की सबसे भारी गाय की नस्ल है।
- उनके बड़े, लटकते और खुले कान विशेष रूप से पहचाने जाते हैं। उनके पैर आकार में सुडौल और संतुलित होते हैं, और उनके खुर छोटे, गोल और मजबूत होते हैं।
- नर बैलो में कूबड़ अच्छी तरह से विकसित होता है, जो अन्य नस्लों की तुलना में इतना कठोर नहीं होता। गला पतला लेकिन लटकता हुआ होता है, और नर गायों में लटकते हुए किल होता है।
- त्वचा का रंग गहरा होता है, थोड़ी ढीली और मध्यम मोटाई की होती है। बाल मुलायम और छोटे होते हैं, जो उनकी चिकनी उपस्थिति में योगदान करते हैं।
- सींग अन्य नस्लों की तुलना में अधिक ऊँचाई तक त्वचा से ढके होते हैं। सींग का आधार मोटा , भारी भरकम लम्बे व् सींग का अंतिम हिस्सा नुकीला होता है।
- कांकरेज गाय (Kankrej Cow) चलते समय अपने कदम 1.25 Spaces को लेते हुए गर्दन ऊपर उठाकर चलती है। इसीलिए इसे सवाईचाल कहते है।
स्वभाव और अनुकूलता :
दुग्ध उत्पादन :
- Milk Production : 1200 – 1300 Kg Per Lactation .
- Fat Production : 4.8 %
खींचने की क्षमताएँ :
मुख्य बिंदु (Key Point) :
- भारत की देशी नस्लों में सबसे भारी गाय की नस्ल ‘कांकरेज’ है।
- कांकरेज गाय में सवाईचाल देखने को मिलती है जो इसकी मुख्य पहचान है।
मुख्य बिंदु (Key Points)
- भारत की सबसे अच्छी बोझा ढोने वाली/भारवाहक नस्ल अमृत महल है।
- महाराष्ट्र की सबसे अच्छी बोझा ढोने वाली/भारवाहक नस्ल खिलारी है।
- राजस्थान की सबसे अच्छी बोझा ढोने वाली/भारवाहक नस्ल नागोरी है।
- गिनीज़ बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स के अनुसार, दुनिया की सबसे छोटी गाय की नस्ल “वेचुर” है।
- विश्व की सबसे छोटी गाय की नस्ल (Dwarf cattle) पुंगनूर गाय है।
- भारत की देशी गायों में सबसे लंबा दुग्धकाल गिर गाय का होता है।
- भारत की सबसे अच्छी द्विप्रयोजनी नस्ल हरियाणा नस्ल है।